भगवान ने मनुष्य को हाथ-पांव दिए हैं जिससे वह अपना काम स्वयं कर ले, जो व्यक्ति दूसरे पर निर्भर रहता है उसका कहीं आदर नहीं होता. सच कहा है-
‘ आस पराई जो तके जीवित ही मर जाए ‘ :-
1. कल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में परलय होयेगी, बहुरि करेगा कब॥
2. नाकों चने चाबाना दाँत खटटे कर देना
3. अब पछताए क्या होत जब चिडिया चुग गयी खेत
4. ओछे की प्रीत, बालू की भीत।
5. जैसे उदई, तैसेई भान, न उनके चुटिया, न उनके कान।
(इसका अर्थ इस रूप में लगाया जाता है जब किसी भी काम को करने के लिए एक जैसे स्वभाव के लोग मिल जायें और काम उनके कारण बिगड़ जाये।)
6. थोथा चना बाजे घना।
(कम योग्यता वाले लोग ज्यादा शोर मचाते हैं)
7. तीतर पारवी बादरी, विधवा काजर देय।
वे बरसे वे घर करें, ई में नहीं सन्देह
8. धूनी दीजे भांग की, बबासीर नहीं होय।
जल में घोलो फिटकरी, शौच समय नित धोय।
9. निन्नें पानी जो पियें, हर्र भूंजके खाय।
दूध ब्यारी जो करें, तिन घर बैध न जाय।
10. अधजल गगरी छलकत जाय।
भरी गगरिया चुप्पे जाय।
11. बन्दर जोगी अगिन जल, सूजी सुआ सुनार।
जे दस होंय ना आपनें, कूटी कटक कलार।
12. मन मोती मूंगा मतो, ढ़ोगा मठ गढ़ ताल।
दल-मल बाजौ बन्धुआ, घर फुटे वेहाल।
13. निन्नें पानी जो पियें, हर्र भूंजके खांय।
दूदन ब्यारी जो करें, तिन घर वैद्य न जॉय।
14. आस पराई जो तके जीवित ही मर जाए
15. पय-पान-रस-पानहीं, पान दान सम्मान।
जे दस मीटे चाहिए, साव-राज-दीवान।।
16. वेल पत्र शाखा नहीं, पंक्षी बसे ना डार।
वे फल हमखों भेजियो, सियाराम रखवार।
17. काबुल गये मुगल बन आये, बोलन लागे वानी।
आव-आव कर मर गये, खटिया तर रओ पानी।
18. मन मोती मूंगा मतो, ढ़ोगा मठ गढ़ ताल।
दल-मल बाजौ बन्धुआ, घर फुटे बेहाल
19. जेठ बदी दसमीं दिनां, जो शनिवासर होई।
पानी रहे न धरनी पै, विरला जीवै कोई।
20. कोदन की रोटी, और कल्लू लुगाई। पानी के मइरे में, राम की का थराई
21. आस-पास रबी बीच में खरीफ
नून-मिर्च डाल के, खा गया हरीफ।
22. सन के डंठल खेत छिटावै, तिनते लाभ चौगुनो पावै।
23. खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत।
24. पानी को धन पानी में, नाक कटे बेईमानी में।
25. अन्धों में काना राजा : मूर्ख मण्डली में थोड़ा पढ़ा-लिखा भी विद्वान् और ज्ञानी माना जाता है.
26. अक्ल बड़ी या भैंस : शारीरिक बल से बुद्धि बड़ी है.
27. अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग : सबका अलग-अलग रंग-ढंग होना.
28. अपनी करना पार उतरनी : अपने ही कर्मों का फल मिलता है.
29. अब पछताये होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत : समय बीत जाने पर पछताने का क्या लाभ.
30. आँख का अन्धा नाम नैनसुख : नाम अच्छा पर काम कुछ नहीं.
31. आगे कुआँ पीछे खाई : सब ओर विपत्ति.
32. आ बैल मुझे मार : जान-बूझकर आपत्ति मोल लेना।
33. आम खाने हैं या पेड़ गिनने : काम की बात करनी चाहिए, व्यर्थ की बातों से कोई लाभ नहीं.
34. अँधेरे घर का उजाला : घर का अकेला, लाड़ला और सुन्दर पुत्र.
35. ओखली में सिर दिया तो मूसली से क्या डर : जब कठिन काम के लिए कमर कस ली तो कठिनाइयों से क्या डरना.
36. अपना उल्लू सीधा करना : अपना स्वार्थ सिद्ध करना.
37. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे : अपराधी अपने अपराध को स्वीकार करता नहीं, उल्टा पूछे वाले को धमकाता है.
38. ऊँची दुकान फीका पकवान : सज-धज बहुत, चीज खराब.
39. एक पंथ दो काज : आम के आम गुठलियों के दाम. एक कार्य से बहुत से कार्य सिद्ध होना.
40. एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है : एक बुरा व्यक्ति सारे कुटुम्ब, समाज या साथियों को बुरा बनाता है.
41. काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है : छल-कपट से एक बार तो काम बन जाता है, पर सदा नहीं.
42. अढाई हाथ की ककड़ी , नौ हाथ का बीज – अनहोनी बात होना
43. अटका बनिया देय उधार
44. अपना ढेंढार देखे नही , दूसरे की फुल्ली निहारे – अपने अधिक दुर्गुण को छोड़ कर दूसरे के कम अवगुण को देखना
जैसे – कांग्रेस,सपा,एनसीपी द्वारा दूसरे दलों के भ्रष्टाचार की बात करने को तो यही कहा जा सकता है , कि अपना ढेंढार देखे नही , दूसरे की फुल्ली निहारे
45. ओछे बैठक ओछे काम, ओछी बातें आठो याम।
घाघ बतायें तीन निकाम, भूलि न लीजौ इनकै नाम।।
यानि- घाघ का कहना है कि जो व्यक्ति आठों पहर ओछे अर्थात् बुरे लोगों की संगत में रहते हैं, नीच काम करते हैं, छोटी बातें करते हैं वे बिल्कुल बेकार होते हैं। भूल कर भी उनका नाम न लीजिए।
46. लाल बुझक्कड़ – ऐसा मूर्ख व्यक्ति जो वास्तव में जानता तो कुछ भी न हो, फिर भी अटकल-पच्चू और ऊट-पटांग अनुमान लगाकर दुरूह बातों का कारण तथा समस्याओं का समाधान करने में न चूकता हो।
कोशिश करूंगा मित्रों की आगे ढूँढ ढूँढ कर ऐसी ही रोचक कहावतों का संकलन जारी रखूं।
मंगलकामनाएँ
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